नज़्म: मुझे मत याद आना तुम
नज़्म: मुझे मत याद आना तुम:
मुझे तुम याद करना और मुझे मत याद आना तुम,
रातों याद आ कर के मेरी नीदें न चुराना तुम।
तुम्हारी यादों ने आ कर मुझको बहुत रुलाया है,
दूर रह कर अब अय दोस्त ,मुझको न रुलाना तुम।
गुज़ारा है जमाना जो वो तेरे साथ दिलकश था,
क़िस्मत मे नही क़ुर्वत तो अब मुझको न सताना तुम।
तन्हाई बख़्श दी तुमने बहुत है ये इनायत तेरी,
तन्हाई भरे मेरे दिल मे हलचल न मचाना तुम।
वो शामे गुनगुनाती थीं और रातें रंगी होती थीं,
भूलना चाहती हूं उनको अब याद भी न दिलाना तुम।
दुआ है नयी ज़िन्दगी में हमेशा तुम ख़ुश ख़ुश रहना,
न मेरे लिए दुआ करना न कोई पछतावा करना तुम।
आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़